Sunday, July 24, 2011

निगाहें



ये निगाहें एक असमंजस में रहती हैं,
आपकी एक नज़र के लिए चौराहे पर टिकी रहती हैं |
दिन भर आपके हुस्न की तारीफ करती हैं,
तो कभी रात में सोने को इंकार करती हैं |

सोचती हैं कभी आपकी निगाहें भी बात करेगी,
कुछ रोशनी के पल साथ चलेगी |
मुझे ही धुन्दती हैं आपकी निगाहों में,
और पूछती हैं, क्या तुम फिर कल मिलोगी |

आपको उदास देखकर ये भी दुखी हो जाती हैं,
रूठकर सब से आसूं बहाती हैं |
आपकी ख़ुशी में ये खिल सी जाती हैं,
और पलकों में शरमा कर छुप जाती हैं |

दुसरो में भी आपको ही दिखाती हैं,
और नज़ाने कितने सपने बुनाति हैं |
बात क्या हैं पूछता हूँ मैं इससे
पर ये चूप रह कर भी कितना बोल जाती हैं |

- हितेश खण्डेलवाल

Nigahen
Hitesh Khandelwal

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