Sunday, July 24, 2011

एक परिंदा



जब छोटा था वो,
उड़ने की चाह में कितनी बार गिरा था वो |
हिम्मत ना हारी लेकिन उसने,
और अपने घोसले से उड़ चुका था वो |

सुबह सुबह उड़कर जब,
वो मेरी खिड़की पर आ बैठता था,
यही कहता था मुझसे वो,
आसमा में उड़ने के लिए पूछता था वो |

ज़िन्दगी में उसके कोई लक्ष्य ना था,
मन में किसी के लिए कोई रोष न था |
अपनी ही मस्ती में मस्त था वो,
जीने का उसमे एक जोश सा था |

कितने मौसम कितने पहाड़ देंखे उसने,
और कितनी ही नदियों का पानी पिया हैं,
लेकिन फिरभी घुमने की चाह को,
उसने अपने दिल में जगा रखा हैं |

एक शिकारी को उसका उड़ना रास ना आया,
तानकर उसने अपना निशाना लगाया |
पंख बिखर गए थे परिंदे के,
फिर भी वो उड़ने की आस ना हारा |

दुसरे साल जब वो फिर मेरी खिड़की पर आया,
मुझे अपनी कहानी सुनाकर मुस्कराया |
फिर अपने अगले मुकाम पर निकल गया था वो,
नए दोस्तों की तलाश में लगा था वो |

मन में के ही सवाल उठता हैं,
क्या परिंदा होना इतना आसन होता हैं ?
या शायद हम ही चाहकर भी उद्द नहीं पाते,
और दुसरो की सोच में गूम जाते हैं ?

- हितेश खण्डेलवाल

Ek Parinda
Hitesh Khandelwal

निगाहें



ये निगाहें एक असमंजस में रहती हैं,
आपकी एक नज़र के लिए चौराहे पर टिकी रहती हैं |
दिन भर आपके हुस्न की तारीफ करती हैं,
तो कभी रात में सोने को इंकार करती हैं |

सोचती हैं कभी आपकी निगाहें भी बात करेगी,
कुछ रोशनी के पल साथ चलेगी |
मुझे ही धुन्दती हैं आपकी निगाहों में,
और पूछती हैं, क्या तुम फिर कल मिलोगी |

आपको उदास देखकर ये भी दुखी हो जाती हैं,
रूठकर सब से आसूं बहाती हैं |
आपकी ख़ुशी में ये खिल सी जाती हैं,
और पलकों में शरमा कर छुप जाती हैं |

दुसरो में भी आपको ही दिखाती हैं,
और नज़ाने कितने सपने बुनाति हैं |
बात क्या हैं पूछता हूँ मैं इससे
पर ये चूप रह कर भी कितना बोल जाती हैं |

- हितेश खण्डेलवाल

Nigahen
Hitesh Khandelwal

Saturday, July 23, 2011

इंतजार



मोह्हबत के आलम में कुछ नशा होता हैं,
डूबने को उसमे हर कोई बेताब होता हैं |

दोनो के दिल में होती हैं एक हल-चल,
और लफ्जोँ से लद्द रही होती हैं एक जुबान |
आखोँ में लिखी होती हैं कई बातें,
और कॉनो में गूंजती हैं बस एक ही आवाज़ |

सपनो में खो जाती हैं ज़िन्दगी,
और होठो से निकलती हैं बस ये शायरी |
मिलने के लिए होता हैं लम्बा इंतज़ार,
आपके बारे में ना सोचे तोह वोह लम्हा बेकार |

काश हम वो कह पाते जो तुम कह पातें,
थामकर तुम्हारा हाथ जो हम कुछ बढ़ पातें |
किस्मत पर तोह क्या रोएँ अब हम,
हम खुद ही जो कुछ कर पातें |

खैर अब वक्त आगे पढ़ गया हैं,
तो आप भी पिछे छुट जायेंगे |
खुदा करे आप हमेशा हमें याद रखे,
दिल कहता हैं आप अगले ही मौड़ पर मिल जायेंगे |

- हितेश खण्डेलवाल

Intezar
Hitesh Khandelwal