Monday, August 31, 2009

मंजिल कहीं खो गयी हैं


रास्ता है लेकिन मंजिल कहीं खो गयी हैं,
होश है लेकिन उम्मीद कहीं खो गयी हैं|

निकले थे सिर पर बाँध कर कफ़न,
अब तो हर साँस भी दफ़न हो गयी हैं |

लौटते हुए हर मुसाफिर से पुछा पता,
ज़वाब से मुश्किलें और भी मुश्किल हो गयी हैं |

उगते सूरज की तपन मद्धम हो गयी हैं,
और चाँद की रोशिनी में भी रात अँधेरी सी हो गयी हैं |

राहों में ठोकर, दिल में तड़प मिली,
इस भीड़ भरी दुनिया में, जीने की जरुरत सी कम हो गयी हैं |

नज़रे धुंधला गयी है, धड़कने अटक गयी हैं,
मुझ मुसाफिर की हिम्मत थक सी गयी हैं |

पलट कर देखा तो दुनिया बेगानी हो गयी हैं,
मुझ हारे हुआ की बदनामी सी हो गयी हैं |

कोई अपना ना हो राहों में तोह लगता है,
मानो मंजिल को पाकर भी, मंजिल कहीं खो गयी हैं|

- हितेश खण्डेलवाल

Manzil Kahin Kho Gayi Hai
Hitesh Khandelwal
PS: Please do point out spelling mistakes, if any.

Wednesday, May 27, 2009

क्या खोया क्या पाया


क्या खोया क्या पाया
सब हैं मोह माया
हो अगर तुम्हारा साया
तो धूप में भी लगे छाया

प्यार ख़ुशी का वो हर रंग लाया
जो दिल को है भाया
मेरे इंसान की पलट गयी है काया
क्या खोया क्या पाया

प्यार अपने संग गम भी लेकर आया
कि अपनी परछाई में भी लगा कि दूजा कोई आया
मेरी ज़िन्दगी को बदहाल बनाया
क्या खोया क्या पाया

मोहब्बत छू गयी थी मेरे दिल को पार
यह एहसास हुआ था पहली बार
मदिरा का नशा भी लगा बेकार
तुझसे ही मिलता था दिल को करार

दी थी जिसे संज्ञा प्यार
धोखा था हर बार
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर हुई तकरार
टूटा मेरा विश्वास बार-बार

फिर मदिरा ही आखिरी में ज़िन्दगी लाया
हर बूँद ने उसकी मेरा साथ निभाया
क्या खोया क्या पाया
सब हैं मोह माया

- हितेश खण्डेलवाल

Kya Khoya Kya Paya
Hitesh Khandelwal