Sunday, October 30, 2011

नज़रे चुराना



चुपके-चुपके उनका वोह नज़रे चुराना,
आहिस्ता-आहिस्ता इन लटो को सुलझाना,
हलके-हलके उन लब्जो को दोहराना,
आपका वोह मुड़ जाना, हमसे कतराना |

ना दीजिये हमें ये सजा इस तरहा,
रखिये ना प्यासा प्यार के बिना,
मुड़ मुड़ कर वोह आपको देखना, और
आपका शर्मा कर वोह परदे में छुपना |

सावन में आपका दामन भिग जाना,
और अकेले में खिलकर मुस्कुराना,
धीरे-धीरे वोह आपका पीछा करना, और
आपका नंगे पैर वोह दौड़ जाना |

आपकी तारीफ में हमारा ग़ज़ल लिखना,
और ये जाम में आपका नशा पीना,
टुक-टुक निगाहे वोह खिड़की पर टिकाये रखना, और
आपका घबराकर वोह गली से निकलना |

हमारी चाहत को, आपका दिल में छुपाकर रखना,
वोह आपका हमें छुप-छुप कर देखना,
वादा हे, हम आपको पा लेंगे,
पर छोड़ दीजिये यूँ हमसे नज़रे चुराना |

- हितेश खण्डेलवाल

Nazre Churana
Hitesh Khandelwal

No comments: